एसीएसटी एक्ट को लेकर खूब बवाल हुआ. कई
जगह हक के लिए हथियार भी हाथ में देखे गए. खूब हंगामा हुआ, कुछ लोगों को चिंता थी –जिनके
घर के परिजन घर से बाहर थे. जब कोई अपना घर से बाहर होता है, तो इंतजार रहता है कि
कब वापस आएगा. हर वक्त एक ही ख्याल रहता है. दरवाजे पर राह रहती है. कब डोर बैल
वजेगी- अगर जरा सी ज्यादा देरी हो जाए तो फोन करके पूछ लिया जाता है, लेकिन अगर
नंबर संपर्क में न आए तो दिल घबरा जाता है. हम लोग बार-बार नंबर डायल करने लगते
हैं. और चिंता होती है. कि कहां होंगे- किस हाल में होंगे. अगर संपर्क में न भी हो
पाए तब वक्त के हाथों मजबूर होकर इंतजार ही लाज्मी होता है. और ऐसा ही इंतजार कर
रहे थे भारत के वो 39 परिवार जिनके अपनों से इराक में बददादी ने खूनी खेल खेला. और
पहाड़ के नीचे उनकी उम्मीदों के साथ-उन्हे भी दफना दिया.
विदेश
राज्यमंत्री वीके सिंह सोमवार दोपहर इराक से 38
भारतीयों के अवशेष लेकर भारत लौट आए। उनका स्पेशल प्लेन अमृतसर में लैंड हुआ। इससे
पहले इराक में सिंह ने खुद विमान में ताबूतों को रखने में सहारा दिया। उन्होंने
ट्वीट किया, कुछ जिम्मेदारियों का बोझ काफी ज्यादा
होता है। बता दें कि इराक के मोसुल में आईएस ने 39 भारतीयों की हत्या कर दी थी, लेकिन एक का डीएनए पूरी तरह से मैच
नहीं करने के चलते वहां से क्लीयरेंस नहीं मिली है। भारत लौटते ही वीके सिंह ने हैरान करने
वाला बयान दिया है. उनके मुताबिक, इराक
में जिन 39 भारतीयों को मार दिया गया है, वो अवैध तरीके से इराक गए थे.
भारत
लौटे वीके सिंह ने इराक में मारे गए भारतीयाें के परिवारों को नौकारी देने की मांग
पर कहा, "यह फुटबाल का खेल नहीं है। मामले को
लेकर केंद्र और राज्य सरकार गंभीर हैं। नौकरी देने को लेकर विदेश मंत्रालय ने
परिवारों से जानकारी मांगी है। हम उनका रिव्यू करेंगे।''
बता
दें कि इराक में मारे गए लोगों के परिजन सरकार से नौकरी देने की मांग कर रहे हैं।
इराक
के लिए कब रवाना हुए थे वीके सिंह?
1 अप्रैल को। इराक जाते वक्त उन्होंने
कहा था, "वहां से आने के बाद पहले अमृतसर, फिर कोलकाता और फिर पटना जाकर उनके
परिजनों को शव सौंपूंगा। इस बारे में मृतकों के परिजनों को सूचना दे दी गई
है।"
किस
जगह से भारत आए अवशेष?
अवशेषों
को बगदाद एयरपोर्ट से भारत लाया गया। इराक में भारतीय राजदूत प्रदीप राजपुरोहित ने
बताया कि अवशेषों को रविवार को ही भारतीय अफसरों को सौंप दिया गया।
किस
विमान से लाए गए?
भारतीयों
के अवशेष बोइंग सी-17 ग्लोबमास्टर से लाए गए। बता दें कि
बोइंग सी-17 एक बड़ा मिलिट्री ट्रांसपोर्ट
एयरक्राफ्ट है।
अवशेषों
को कहां-कहां ले जाया गया?
मारे गए लोग पंजाब, हिमाचल, पश्चिम बंगाल और बिहार के थे। अवशेषों
को उन्हीं के राज्य में सौंपा जाएगा। सुषमा ने कहा था कि मरने वालों में कोई
दिल्ली का नहीं है, लिहाजा इराक से फ्लाइट दिल्ली नहीं
आएगी।
केस
पेंडिंग होने से एक शख्स के अवशेष नहीं मिलेंगे
- वीके सिंह ने कहा था, "हमें एक आदमी का शव केस पेंडिंग होने की वजह से नहीं मिलेगा। हम उसके
परिवार को सबूतों के साथ ताबूत सौंप देंगे, जिससे
उन्हें कोई शंका न रहे। मैं मारे गए लोगों के परिवारों के प्रति सहानुभूति व्यक्त
करता हूं।''
आईएस ने मोसुल के बदूश में की थी हत्या
मारे
गए कुछ लोगों के परिवारों ने 26 मार्च को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज
से मुलाकात की थी. इस महीने, विदेश मंत्री ने संसद को बताया था कि
आतंकी समूह आईएसआईएस ने जून 2014 में इराक के मोसूल से 40 भारतीयों का
अपहरण कर लिया था लेकिन उनमें से एक खुद को बांग्लादेश का मुस्लिम बताकर भाग निकला
था. उन्होंने कहा था कि बाकी 39 भारतीयों को बदूश ले जाया गया और उनकी
हत्या कर दी गई.
आईएस
के चंगुल से छूटे हरजीत मसीह
भारतीय
मजदूरों के अपहरण के बाद आईएस ने 55 बांग्लादेशी मजदूरों को छोड़ दिया. इन
लोगों के साथ मिलकर एक भारतीय हरजीत मसीह भी आईएस के चंगुल से बच निकलने में
कामयाब रहा.
‘पहाड़ खोदकर निकाले गए 39 भारतीयों के शव’
स्वराज
के मुताबिक, जनरल वीके सिंह, भारतीय राजदूत और इराक के एक अफसर ने
बलूच में जाकर लापता भारतीयों की खोज की. जहां, जानकारी मिली कि एक पहाड़ के नीचे कई
शवों को एक साथ दफनाया गया है.स्वराज ने बताया कि मिली जानकारी के आधार पर डीप
पेनिट्रेशन रडार के जरिए पहाड़ में दफनाए गए लोगों का पता लगाया गया. इसके बाद
पहाड़ खोदकर सभी शव निकाले गए. शवों के साथ कुछ आईकार्ड और कुछ जूते मिले.
DNA से हुई शवों की पहचान
विदेश
मंत्री ने कहा कि पहाड़ से जो शव मिले थे. उन पर विशेष ध्यान इसलिए भी था क्योंकि
हमारे 39 लोग लापता थे और पहाड़ से जो शव बरामद हुए वो भी 39 ही
थे. सुषमा ने बताया कि मार्टिअस फाउंडेशन ने शवों के साथ भेजे गए डीएनए का मिलान
किया. इसमें सबसे पहला डीएनए संदीप नाम के लड़के का मिला. इसके बाद बाकी लोगों के
भी डीएनए मिले.
20 मार्च को सुषमा स्वराज ने संसद और बाद में
प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा- "जब हमें ये पता लगा कि टीले में कुछ शव हैं तो
हमने इराक सरकार के साथ मिलकर डीप पेनिट्रेशन रडार से सच्चाई का पता लगाने का
फैसला किया।" "जब ये पुख्ता हो गया कि इसमें शव हैं
तो हमने उसकी खुदाई करवाई। जो शव मिले उन सभी का डीएनए टेस्ट कराया गया। 98 से
100% तक सैंपल मैच हो गए तो हमने संसद में इसकी जानकारी देना उचित समझा। जिसके बाद से
भारतीय नागरिकों के अवशेष लाए जाने की हर संभव भारत के हुक्मरानों की तरफ से की जा
रही थी. लिहाजा 39 में से 38 भारतीय नागरिकों के अवशेषों को लाया जा चुका है.
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39 Ðâíºíñ ŒðãÍííÐâ
ÎííÅÕí â îËíØâíÐâ (DNA ŒãÇÉãÍíý ÇíØâïä Øðâ®í)
जो इस दुनिया से सालों पहले चला गया--- उसके लौटने का रहता था सिर्फ
इंतजार--- थी बाकि उसके जिंदा होने की उम्मीद--- इससे तकलीफ देह आज क्या होगा- जब
इन लोगों ने अपनों के अवशेषों को देखना नसीब हुआ—जिनका आखिरी बार ये चहरा भी नहीं
देख पाए.... देश के 39 परिवार इसी उम्मीद में जी रहे थे कि एक दिन उनका बेटा वापिस
आएगा. उनके अपने वतन वापस लौट आएंगे ...
लेकिन ऐसा नहीं हुआ—यह तस्वीर पंजाब से करीब साढे तीन हजार किलोमीटर
की दूरी से आज भारत आ पहुंचे शवों के अवशेषों की है. यह तस्वीर उन लोगों की है
जिन्हे चार साल पहले मार कर दफन कर दिया गया. बीते चार साल में शवों के अवशेष भी
मिट्टी में मिट्टी होने लगे थे. लेकिन चार सालों तक ये अवशेष – 39 परिवारों के लिए
जिंदा इंसान बने रहे. चार साल से इनके परिवार के लोग इनकी वापसी का इंतजार करते
रहे..
कोई मां अपने बेटे का इंतजार कर रही थी. कोई बाप अपने बुढ़ापे के
सहारे के राह देख रहा था...... कोई बहन अपनी राखी के लिए रक्षा का वचन देने वाले
भाई की बाजु ढूंढ रही थी..... तो कोई
पत्नी अपने पति का इंतजार कर रही थी... किसी बच्चे को पापा का इंतजार था...
लेकिन उन्हे क्या मालूम था कि जिसका उन्होने चार साल इंतजार किया उसका
उन्हे चेहरा भी देखना नसीब नहीं होगा... बस इतनी सी महर रव की रही कि अब पूरे रिती
रिवाज से वक्त ने अंतिम संस्कार तय कर दिया. लेकिन वक्त भी इन परिवारों से बफा न
कर पाया. वो तो गए थे इराक रोजी रोटी की तलाश में लेकिन वहां बगदादी उनके खून का
प्यासा हो गया,