शनिवार, 24 सितंबर 2016

ज़मीनी हकीक़त : भगवान् के दम पर धनी

प्रथा आजकल ज्यादा प्रचलित है और यहीं प्रथा नवरात्रों या उपहारों में ज्यादा शुरू हो जाती है। चौराहों में शहरों में बाज़ारों में और परिवहन निगम स्थानालाय में ज्यादातर। एक बच्ची -औरत एक  थाली में एक माँ शेरां वाली की मूर्ति या तस्वीर (या  किसी दूसरे भगवन की) लगाकर बस में सफर करने वालों को आशीर्वाद देती है। उनको ढेर सारी  दुआएं देती है। और बदलमे क्या लेती है सिर्फ 10 -15 रूपये। अगर 10 -15 रूपये में जग -जुग जियो , खूब तरकी करो- सब इसी में हो जाये तो रोज़ जीने के लिए 10 -15 रूपये बस में माता के नाम देकर शाम को दो चार घूंट मदिरा और तरकि के लिए चोरी डकैती या फिर वेहला बैठा रहता हूँ क्यों मेहनत करनी। सही है - भगवान् की तस्वीर लेकर घूमने से अगर महल और रोटी मिल जाए तो यही काम अछा है - और शायद व्यापार भी यही अच्छा रहेगा -एक टीम बनाकर रख लेता हूँ और उनकी ड्यूटी लगा लेता हूँ। उनको भी रोज़गार मिल जाएगा और मुझे व्यापार मिल जाएगा। भगवान के नाम का -लोगों को आशीर्वाद देकर उनसे उनकी मेहनत का पसीना बून्द बून्द लेता रहूँगा। मेहनत तो इसमें भी लगेगी पर भगवान् के दम पर धनी  बन जाऊंगा।
सही बात है - या नहीं ये तो आपको ही भली भांति ज्ञात होगा - भगवान को भगवान के नाम को व्यापार न बनाएं  और राह चलते हर इंसान को पैसे देकर भिखारी न बढ़ाएं। 

ज़मीनी हकीक़त : कहीं मंहंगे भक्त, कहीं सस्ते भगवान्

आजकल नया दौर शुरू हो गया है, महंगे और सस्ते का जोकि हमारे समाज का एक स्टेटस सिम्बल है ।  जिस मंदिर मस्ज़िद गुरुद्वारा सब मे हर धार्मिक स्थान पर सबको एक बराबर समझा जाता है वहां आज सब शायद सामान नहीं है। क्योंकि अगर किसी भी धार्मिक स्थान पर कोई नेता या उच्च दर्ज़े का अफसर पहुँचता है तो उसके लिए प्रवेश द्वार से लेकर बहार निकलने तक  उच्च कोटि के प्रबंध होते है। उक्त व्यक्ति या नेता के लिए पूरा प्रशासन सतर्क और जनता परेशान होती है। इसी बीच आजकल प्रभु  दर्शनों ने  भी रेट लगने लगे है-पर्चियां काटी (जोकि मंदिर या भवन विकास के लिए प्रयोग में लायी जाती है ) जाती है। कोई पर्ची 10 देकर लेता है तो कोई 10 हज़ार, हर कोई अपनी पहुँच के अनुसार पर्ची कटवाता है। लेकिन यहाँ भी भेड़ चाल देखि है - देखा देखि होती है। ( यहाँ किसी व्यक्ति विशेष की बात नहीं करूँगा क्योंकि  वर्तमान में सबके साथ वास्तविक तौर पर होता हैं। ) जहाँ सरकारी अफसर दर्शनों के लिए किसी कतार में न खडा होकर सीधा द्वार तक पहुँचता है। वहीँ आम आदमी घंटों इंतज़ार कर मेहनत से मिष्ठान ग्रहण करता है। कहीं कही तो रेलवे टिकेट की तरह पहले ही बुकिंग हो जाती है कि आज श्रीमान नेता जी आने वाले है - विशेष कपाट खोल दिया जाए।जिससे  साफ़ जाहिर है कि कहीं मंहंगे भक्त, कहीं सस्ते भगवान् और कहीं  मंहंगे भगवान्,कहीं सस्ते भक्त।