प्रथा आजकल ज्यादा प्रचलित है और यहीं प्रथा नवरात्रों या उपहारों में ज्यादा शुरू हो जाती है। चौराहों में शहरों में बाज़ारों में और परिवहन निगम स्थानालाय में ज्यादातर। एक बच्ची -औरत एक थाली में एक माँ शेरां वाली की मूर्ति या तस्वीर (या किसी दूसरे भगवन की) लगाकर बस में सफर करने वालों को आशीर्वाद देती है। उनको ढेर सारी दुआएं देती है। और बदलमे क्या लेती है सिर्फ 10 -15 रूपये। अगर 10 -15 रूपये में जग -जुग जियो , खूब तरकी करो- सब इसी में हो जाये तो रोज़ जीने के लिए 10 -15 रूपये बस में माता के नाम देकर शाम को दो चार घूंट मदिरा और तरकि के लिए चोरी डकैती या फिर वेहला बैठा रहता हूँ क्यों मेहनत करनी। सही है - भगवान् की तस्वीर लेकर घूमने से अगर महल और रोटी मिल जाए तो यही काम अछा है - और शायद व्यापार भी यही अच्छा रहेगा -एक टीम बनाकर रख लेता हूँ और उनकी ड्यूटी लगा लेता हूँ। उनको भी रोज़गार मिल जाएगा और मुझे व्यापार मिल जाएगा। भगवान के नाम का -लोगों को आशीर्वाद देकर उनसे उनकी मेहनत का पसीना बून्द बून्द लेता रहूँगा। मेहनत तो इसमें भी लगेगी पर भगवान् के दम पर धनी बन जाऊंगा।
सही बात है - या नहीं ये तो आपको ही भली भांति ज्ञात होगा - भगवान को भगवान के नाम को व्यापार न बनाएं और राह चलते हर इंसान को पैसे देकर भिखारी न बढ़ाएं।
सही बात है - या नहीं ये तो आपको ही भली भांति ज्ञात होगा - भगवान को भगवान के नाम को व्यापार न बनाएं और राह चलते हर इंसान को पैसे देकर भिखारी न बढ़ाएं।