शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

गुड़गांव और मेवात जिले का नाम बदलने पर होगा काफी बदलाब

हरियाणा सरकार ने गुड़गांव और मेवात जिले का नाम बदलने का फैसला  2016 के  आर्थिक वार्षिक वर्ष की तीसरी तिमाही में  लिया गया । 12 अप्रैल मंगलवार को लिए गए फैसले के मुताबिक, अब गुड़गांव का नाम गुरुग्राम और मेवात का नूंह होगा। बीजेपी सरकार ने इसे लोगों की मांग बताया ।


                                                               क्यों जाना जाता है गुड़गांव?
- गुड़गांव, दिल्ली-एनसीआर में आता है। दिल्ली से सटे होने के कारण पिछले कुछ सालों में यहां काफी डेवलपमेंट हुआ है।
- गुड़गांव की पहचान नाॅर्थ इंडिया की साइबर सिटी के तौर पर भी है।
- कनेक्टिविटी और बिजनेस फ्रेंडली होने के चलते काॅरपोरेट्स कंपनियों की पहली पसंद दिल्ली के बाद गुड़गांव ही है।

                                                     गुड़गांव हरियाणा का इंडस्ट्रियल हब
 बता दें कि गुड़गांव हरियाणा का इंडस्ट्रियल हब है और यहां की आबादी करीब 70 लाख है,,,23 लाख से ज्यादा आबादी वाले गुड़गांव को मिलेनियम सिटी के नाम से भी जाना जाता है. गुड़गांव हरियाणा का आर्थिक केंद्र है. यहां पर मारुति सुजुकी का सबसे बड़ा प्लांट है. फॉर्च्यून 500 में शामिल 250 से ज्यादा कंपनियों का दफ्तर भी गुड़गांव में ही है. एक अनुमान के मुताबिक शहर में 1100 ऊंची रिहायशी इमारते हैं, जबकि 26 शॉपिंग मॉल हैं. आर्थिक केंद्र होने की वजह से गुड़गांव देश का तीसरा सबसे ज्यादा प्रतिव्यक्ति आय वाला शहर है.


                                                    महाभारत में मिलता है गुरुग्राम का जिक्र
- मौजूदा गुड़गांव का महाभारत में जिक्र मिलता है।
- बताया जाता है कि यहां गुरु द्रोणाचार्य स्टूडेंट्स को शिक्षा दिया करते थे।
- बीजेपी का कहना है कि लोग लंबे वक्त से चाहते थे कि गुड़गांव का नाम बदलकर गुरुग्राम किया जाए।


                                                        मेवात जिले का नाम बदलकर नूह किया
मेवात दरअसल एक भौगोलिक और सांस्कृतिक इकाई है, न कि एक शहर। यह हरियाणा से बाहर पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश और राजस्थान तक फैला हुआ है।मेवात जिले का मुख्यालय नूह शहर है। इलाके के लोग और निर्वाचित प्रतिनिधि मांग कर रहे थे कि इसका नाम बदलकर नूह कर दिया जाए। 


                                                           कांग्रेस ने क्यों जताया एतराज?
- पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा है कि मेवात का नाम नहीं बदला जाना चाहिए था।
- उन्होंने कहा कि 1857 की पहली फ्रीडम फाइट के दौरान ही मेवात जिले का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है।
- "मेवात के लोगों ने ही सबसे पहले अंग्रेज फौजों का डटकर मुकाबला किया था।"
- इससे पहले दूसरे नेताओं ने खट्टर सरकार पर आरएसएस के भगवा एजेंडे को आगे बढ़ाने के आरोप लगाए।
- हालांकि, हुड्डा ने गुड़गांव का नाम बदलकर गुरुग्राम किए जाने के फैसले का स्वागत किया है।
- उन्होंने कहा कि पहले इसका नाम गुरुग्राम ही था जिसका महाभारत में भी जिक्र मिलता है।


                                             कांग्रेस का सवाल क्यों बदला मेवात का नाम...
- सीएम मनोहर लाल खट्टर ने दोनों जिलों के नाम बदलने के प्रपोजल को मंजूरी दे दी है।
- इस पर कांग्रेस ने बीजेपी पर आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया है।
- वहीं, बीजेपी का कहना है कि गुड़गांव और मेवात जिलों के डीसी की तरफ से राज्य सरकार के पास इन जिलों के नाम बदलने के प्रपोजल आए थे।

                                                                   मंत्री ने क्या कहा?
- हरियाणा सरकार में मिनिस्टर अनिल विज के मुताबिक, लोकल लोगों की मांग पर काफी डिस्कशन के बाद दोनों जिलों के नाम बदले जाने की मंजूरी दी गई।
- सरकार ने कहा कि गुरुग्राम का जिक्र महाभारत में भी है। यहां गुरु द्रोणाचार्य कौरव और पांडवों को शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा दिया करते थे।
- बता दें कि इससे पहले भी हरियाणा सरकार यमुनानगर जिले के मुस्तफाबाद का नाम बदलकर सरस्वती नगर कर चुकी है।



                                                  गुड़गांव की पहचान एक ब्रांड के रूप में
पूरी दुनिया में गुड़गांव की पहचान एक ब्रांड के रूप में है। यह पहचान यहां निवेश के रूप में हजारों करोड़ रुपये खर्च होने के बाद मिली है। अब गुरुग्राम को गुड़गांव की तरह ब्रांड बनाने में आने वाले खर्च को लेकर विशेषज्ञों ने आकलन शुरू कर दिया है। आइटी क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा करने में कम से कम पांच हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा और दो से तीन साल तक लगातार मेहनत करनी होगी। 
अनुमान लगाया जा सकता है कि गुड़गांव को गुरुग्राम नाम से ब्रांड बनाने में कितना खर्च होगा। ठीक है कि अब ब्रांडिंग के लिए आइटी आधारित कार्य अधिक हो गए हैं, इस वजह से ब्रांड बनाने में अधिक समय नहीं लगेगा। इसके बावजूद प्रदीप का आकलन है कि इस काम में कम से कम पांच हजार करोड़ रुपये खर्च करने होंगे।


                                                      हर एक जगह बदलना होगा नाम
गुड़गांव देश के भीतर एक ऐसी ग्लोबल सिटी है, जिसकी पहचान दुनिया के कोने-कोने में है और यहां मल्टीनेशनल कंपनियों की भरमार है। इन सभी को अपनी फाइलों में नाम बदलना होगा, सभी बोर्ड बदलने होंगे, गूगल में जाकर नाम बदलवाना होगा आदि। सबसे बड़ी बात यह है कि आज पूरी दुनिया के लोगों की जुबान पर गुड़गांव नाम चढ़ चुका है, यह स्थान जुबान पर गुरुग्राम को दिलाने के लिए विज्ञापन के ऊपर भी काफी खर्च करना होगा। गुड़गांव में आइटी, टेलीकॉम, आइटी इनेबल्ड एरिया से जुड़ी 2000 से अधिक कंपनियां हैं। इनमें से 600 कंपनियां मल्टीनेशनल हैं। मल्टीनेशनल कंपनियों में सबसे अधिक संख्या अमेरिकन कंपनियों की है। इसके अलावा जापान, कोरिया, कनाडा, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी एवं ऑस्ट्रेलिया सहित अधिकतर देशों की कंपनियां गुड़गांव में हैं। इसी तरह अन्य सेक्टरों की कंपनियां भी हैं। नया नाम बदलने के लिए सभी के ऊपर कुल मिलाकर बेकार में हजारों करोड़ रुपये खर्च करने का दबाव आ जाएगा।


                         नाम बदलने की बजाय अंतरराष्ट्रीय संस्थान बना दें
 प्रदेश सरकार यदि गुरुग्राम शब्द को प्रचारित करना चाहती है तो इस नाम से कोई अंतरराष्ट्रीय संस्थान गुड़गांव में बना दे। ऐसा संस्थान बनाए कि पूरी दुनिया के लोग उसमें आने को मजबूर हो जाएं। यदि गुड़गांव में मल्टीनेशनल कंपनियां नहीं आती तो क्या इसका नाम पूरी दुनिया में होता।

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

सिद्धू ने क्यों नहीं खोले पत्ते

नवजोत सिंह सिद्धू ने सोमवार को दिल्ली में 10 मिनट की प्रेस कॉन्फ्रेंस तो की, लेकिन वहां मौजूद मीडिया के लोगों की एक बात नहीं सुनी। वे बस बोलते गए। फिर उठकर चले गए। असल कहानी प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले शुरू हो गई थी।सूत्रों ने मुलाबिक प्रेस कंफ्रेसन वाले दिन 25 जुलाई की सुबह सिद्धू अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के साथ ब्रेकफास्ट टेबल पर थे। सिद्धू का इसी महीने AAP ज्वाइन करना तय था। लेकिन केजरीवाल के बिजी होने के कारण यह टल गया। वहीं, सिद्धू ने बीजेपी के बारे में कुछ  दावे भी किए-
शेर--शायरी से इशारों में अकाली दल और बीजेपी पर हमला करते हुए काफी कुछ बोले-लेकिन बीजेपी छोड़ी या नहीं, आप में जाएंगे या नहीं, इस पर कुछ नहीं कहा। जब सिद्धू प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए तो उन्होंने 18 जुलाई को राज्यसभा मेंबरशिप से इस्तीफा देने को लेकर चुप्पी तोड़ी, लेकिन पत्ते नहीं खोले।

सिद्धू ने क्यों पत्ते नहीं खोले
- सूत्रों के मुताबिक, सिद्धू का 29 जुलाई को आप ज्वाइन करना तय था। इसी को लेकर संभवत: नाश्ते पर उनकी केजरीवाल और सिसाेदिया से बातचीत भी हुई। लेकिन 29 तारीख को ही बिक्रम मजीठिया के मानहानि के मामले में केजरीवाल को अमृतसर कोर्ट में पेश होना है।
- इसके बाद 30 जुलाई से दो हफ्ते के लिए केजरी छुट्टी पर जा सकते हैं। ऐसा हुआ तो वे 12 अगस्त को लौटेंगे। ऐसे में, सिद्धू 13 अगस्त के बाद ही आप में शामिल हो सकते हैं।








डोपिंग टेस्ट

क्या है डोपिंग टेस्ट?
आम तौर पर एक खिलाड़ी का करियर छोटा होता है. अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में होने के समय ही ये खिलाड़ी अमीर और मशहूर हो सकते हैं. इसी जल्दबाजी और शॉर्टकट तरीके से मेडल पाने की भूख में कुछ खिलाड़ी अक्सर डोपिंग के जाल में फंस जाते हैं.
यह बीमारी केवल भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में फैली हुई है. हाल ही में अंतरराष्ट्रीय खेल पंचाट ने डोपिंग को लेकर रूस की अपील खारिज कर दी, जिससे रूस की ट्रैक और फील्ड टीम रियो ओलंपिक में भाग नहीं ले सकेगी. यहां तक कि बीजिंग ओलंपिक 2008 के 23 पदक विजेताओं समेत 45 खिलाड़ी पॉजीटिव पाए गए. बीजिंग और लंदन ओलंपिक के नमूनों की दोबारा जांच में नाकाम रहे खिलाड़ियों की संख्या अब बढ़कर 98 हो गई है.
क्या है वाडा और नाडा?
किसी भी खिलाड़ी का डोप टेस्ट विश्व डोपिंग विरोधी संस्था (वाडा) या राष्ट्रीय डोपिंग विरोधी (नाडा) ले सकता है. अंतरराष्ट्रीय खेलों में ड्रग्स के बढ़ते चलन रोकने के लिए वाडा की स्थापना 10 नवंबर, 1999 को स्विट्जरलैंड के लुसेन शहर में की गई थी. इसी के बाद हर देश में नाडा की स्थापना की जाने लगी. इसके दोषियों को 2 साल सजा से लेकर आजीवन पाबंदी तक सजा का प्रावधान है.

डोपिंग का इतिहास
वैसे देखा जाए तो डोपिंग का इतिहास काफी पुराना है। 1904 ओलंपिक में सबसे पहले डोपिंग का मामला सामने आया था, लेकिन इस संबंध में प्रयास 1920 से शुरू हुए। शक्तिवर्धक दवाओं के इस्तेमाल करने वाले खिलाड़ियों पर नकेल कसने के लिए सबसे पहला प्रयास अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स महासंघ ने किया और 1928 में डोपिंग के नियम बनाए गए।
1968 ओलंपिक में पहली बार डोप टेस्ट अमल में लाया गया और धीरे-धीरे ऐसा करने वाले खिलाड़ियों पर शिकंजा कसना शुरु हो गया। लेकिन इस दिशा में बड़ा प्रयास उस वक्त हुआ जब 1998 में प्रतिष्ठित साईकिल रेस टू-डी-फ्रांस के दौरान खिलाड़ी डोप टेस्ट में असफल होते पाए गए। ऐसे में यह महसूस किया गया कि डोप टेस्ट को लेकर अभी तक प्रयास बहुत ही बौना साबित हुआ है। लिहाजा अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने 1999 में विश्व एंटी डोपिंग संस्था (वाडा) की स्थापना की। इसके बाद प्रत्येक देश की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर डोपिंग रोधी संस्था ( नाडा) की स्थापना की जाने लगी।

 1968 में पहली बार हुई थी फजीहत
भारत में डोपिंग को लेकर बड़ा खुलासा 1968 के मेक्सिको ओलंपिक के ट्रायल के दौरान हुआ था, जब दिल्ली के रेलवे स्टेडियम में कृपाल सिंह 10 हजार मीटर दौड़ में भागते समय ट्रैक छोड़कर सीढ़ियों पर चढ़ गए थे. उस दौरान कृपाल सिंह के मुंह से झाग निकलने लगा था और वे बेहोश हो गए थे. जांच में पता चला कि कृपाल ने नशीले पदार्थ ले रखे थे, ताकि मेक्सिको ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर पाएं. इसके बाद तो फिर डोपिंग के कई मामले सामने आए.
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के नियमों के अनुसार डोपिंग के लिए खिलाड़ी और केवल खिलाड़ी ही जिम्मेदार होता है. डोपिंग में आने वाली दवाओं को पांच श्रेणियों में रखा गया है. ये हैं- स्टेरॉयड, पेप्टाइड हार्मोन, नार्कोटिक्स, डाइयूरेटिक्स और ब्लड डोपिंग.

कैसे लिया जाता है टेस्ट?

किसी भी खिलाड़ी का कभी भी डोप टेस्ट लिया जा सकता है. इसके लिए संबंधित फेडरेशन को जिम्मेदारी दी गई है. किसी प्रतियोगिता से पहले या प्रशिक्षण शिविर के दौरान डोप टेस्ट अक्सर लिए जाते हैं. ये टेस्ट नाडा या फिर वाडा की तरफ से कराए जाते हैं. वह खिलाड़ियों के मूत्र को वाडा नाडा के विशेष लेबोरेट्री में पहुंचाती है.

नाडा की लेबोरेट्री नई दिल्ली में है. '' टेस्ट में पॉजीटिव आने पर खिलाड़ी को बैन किया जा सकता है. यदि खिलाड़ी चाहे तो 'बी' टेस्ट के लिए एंटी डोपिंग पैनल में अपील कर सकता है. इसके बाद फिर नमूने की जांच होती है. यदि 'बी' टेस्ट भी पॉजीटिव आए तो अनुशासन पैनल खिलाड़ी पर पाबंदी लगा सकती है.

दोषी खिलाड़ी कर सकता है अपील
नाडा से मिली सजा के खिलाफ खिलाड़ी वाडा में अपील कर न्याय मांग सकता है। इतना ही नहीं खिलाड़ियों के खिलाफ किसी तरह अन्याय ना हो इसलिए विशेष खेल न्यायालय स्पोर्ट्स आर्बिटेशन कोर्ट भी बनाया गया है, जो सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है।